Wednesday, May 28, 2008
अभी शादी का पहला ही साल था........
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था,
ख़ुशियाँ कुछ यूँ उमड़ रहीं थी,
की संभाले नही संभाल रही थी,
सुबह सुबह मेडम का चाय ले कर आना
थोड़ा शर्माते हुए हमे नीद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हुमरे बालों मे फिराना,
मुस्कुराते हुए कहना की डार्लिंग चाय तो पी लो,
जल्दी से रेडी हो जाओ,
आप को ऑफीस भी है जाना।
घरवाली भगवान का रूप ले कर आई थी,
दिल ओर दिमाग़ पर पूरी तरह छाई थी,
साँस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था,
इक पल भी दूर जीना दुश्वार होता था
.
.
.
.5 साल बाद…….....
.
.
.
सुबह सुबह मेडम का चाय ले कर आना,
टेबल पैर रख कर ज़ोर से चिल्लाना,
आज ऑफीस जाओ तो मुन्ना को
स्कूल छोड़ते हुए जाना…………॥
एक बार फिर वोही आवाज़ आई,
क्या बात है अभी तक छोड़ी नही चारपाई,
अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना,
मुन्ना की टीचर्स को फिर ख़ुद ही संभाल लना
ना जाने घरवाली कैसा रूप ले कर आई थी,
दिल और दिमाग़ पे काली घटा छाई थी,
साँस भी लेते है तो उन्ही का ख़याल होता है,
हर समय ज़ेहन मैं एक ही सवाल होता है,
क्या कभी वो दिन लौट के आएँगे,
हम एक बार फिर कुवारें बन पायेंगे
Monday, April 7, 2008
आओ अब अपने गांव लौट चलें........
वो जब तक जिंदा रहा घर को याद करता रहा...
आज के इस दौर मे इन्सान इस आधुनिक दौर मे अच्छे रहें सहन के लिए अपनी मिटटी से दूर शहरों मे एक अच्छा जीवन जीने के लिए आते हैं और अपने असल मकसद से भटक जाते हैं और इतना आगे निकल जाते हैं कि ना तो वो शहर के रह जाते हैं और ना ही अपने गांव लौट पाते हैं कियोंकि उनके बच्चों को इस शहर कि आदत लग जाती है और वो अपनी मिट्टी से इतना दूर हो जाते हैं की आज के दौर मे समाज मे अपना मकाम खोजने के चक्कर मे अपनी मिट्टी अपने बुजर्गों और तो और अपने जन्म भूमि से भी दूर हो जातें है की उन्हें पता ही नही चलता और जब अपता चलता है तो बहुत देर हो चुकी होती है और वो अपनी मिट्टी से दूर निकल चुके होते हैं की लोटने के सारे रास्तें बंद हो चुके होते हैं और मज़बूरी मे इस तनाव भरी जिंदगी जीने को मजबूर हो जातें है...अगर वक्त रहते लोग अपनी गांव लौट जायें तो अच्छा है...इस से हम अपनी भारतीये सभायेता को काफी हद तक बचा पाएंगे और अपने बच्चों को एक स्वस्थ भारतीये सभ्यता दे पाएंगे...हमे इस आधुनिक दूर से आगे निकल का सोचने की ज़रूरत है.....
Friday, April 4, 2008
यह है हमारा भारत..जिस पर हर भारतीये को रोना आया...
एक ही उल्लू काफी था बर्बादे गुलिस्तान के लिए,
हर शाख पर उल्लू बैठा है बर्बादे गुलिस्तान क्या होगा॥ शायर ने शायद ठीक ही लिखा था...
भारत को आजाद कराने के लिए बलिदान देने वालों ने शायद ही कभी ऐसा सोचा होगा..जिस देश की लिए माओं ने अपने सपूतों को कुर्बान करने मे फक्र किया था आज उसी देश की माओं को देश की दुर्दाश देख कर रोना तो आता ही होगा..भारत को किसानों का देश कहा जाता था आज वो ही किसान और उसका परिवार भूखा मर रहा है॥जिन देश भक्तों ने देश के लिए जान दी आज उन्ही के परिवार के पास रहने को छत नही है और न ही खाने को खाना॥जो लोगो आज देश को चला रहें हैं उनके पास किया किया मौजूद है शायद वो भी नही जानते..आज के नेता तो जानवरों के चारा भी नही छोड़ते..कोई सुरक्षा के समान को खरीदने मे दलाली ले लेता है.. और देश की सुरक्षा कर रहे जवानों की ज़िंदगी को देश के दुश्मनों के सामने पेश कर देते हैं..यह हमारी उन लाखों शहीदों को श्रीध्न्जली तो कभी नही हो सकती..न ही देश भक्ति हो सकती है..हमे अपने नेताओं के बारे मे एक बार फिर सोचना होगा की देश उनके हाथों मे कितना सुरक्षित है....